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⚡ *सबसे बड़ा नशा,ध्यान!*⚡
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अभी तुम बहुत तरह के नशों में जी रहे हो--*धन का, पद का* *प्रतिष्ठा का।* ये सब नशे छोड़ देने हैं। और एक नशा पी लेना *है--ध्यान* का समाधि का*। एक शराब समाधि की। और एक घूंट काफी है। एक घूंट सागर के बराबर है। एक घूंट पीया कि नशा फिर कभी उतरता ही नहीं। और नशा भी ऐसा नशा कि बेहोशी भी आती है और होश भी आता है। साथ-साथ आते हैं, युगपत आते हैं। एक तरफ होश, एक तरफ बेहोशी। और तभी मजा है। जब बेहोशी के बीच होश का दीया जलता है, जब तुम नाचते भी हो मस्ती में और भीतर कोई ठहरा भी होता है, *जब बाहर तो तुम्हारा नृत्य मीरा का होता है और भीतर तुम्हारा ठहराव बुद्ध का होता है--तब मजा है।* तब जिंदगी आनंद है, तब जीवन उत्सव है।
मेरी दृष्टि में, उस क्षण ही अनुभव होता है कि परमात्मा है। उसके पहले लाख मानो, मानने से कुछ भी नहीं होता है। उस क्षण जाना जाता है। और जिसने जाना उसके जीवन में सौभाग्य की घड़ी आ गई।
⚡ *आपुई गई हिराय*⚡
🌹♥🌎 *sho* 🙏🏻♥🌹
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