कैवल्‍य उपनिषद--ओशो ( ग्‍यारहवां--प्रवचन)

तीन शरीर चार अवस्‍थाओं की बात—ग्‍यारहवां प्रवचन

 ध्‍यान योग शिविर,

30 मार्च 1972, रात्रि।

माऊंट टाबू, राजस्‍थान।

सूत्र :

      पुनश्‍च जन्मान्‍तरकर्मयोगात् स एव जीव स्वपिति प्रबुद्ध:।

      पुरत्रये क्रीडति यश्‍च जीवस्तमखु जातं सकलं विचित्रम्।

      आधारमानंदमखष्ठ बोध यस्मिन् लय जाति पुरत्रयंच ।।14।।

      एतमाज्‍जायते प्राणो मन: सवत्रियाणि च।

      खं वायुज्योर्तिराप पृथ्वी विश्वस्य धारिणी।।15।।

पिछले जन्मों के कार्यों से प्रेरित होकर वही मनुष्य सुषुप्तावस्था से पुन: स्वप्रावस्था व जाग्रतावस्था में आ जाता है। इस तरह से ज्ञात हुआ कि जीव जो तीन प्रकार के पुरों (शरीरों ) — स्थूल, सूक्ष्म और कारण में रमण करता है,उसी से इस सारे मायिक प्रपंच की सृष्टि होती है। जब तीन प्रकार के शरीरों  (स्थूल, सूक्ष्म,कारण) का लय हो जाता है, तभी यह जीव मायिक प्रपंच से मुक्त हो कर अखंडानंद का अनुभव करता है।। 14।।

इसी से प्राण, मन और समस्त इंद्रियों की उअत्ति होती है। इसी से पृथ्वी की सृष्टि होती है जो आकाश, वायु अग्रि, जल और सारे संसार को धारण करती है।। 15।।

BARDO Tibetan MrutuPrayog
तिब्बत में इस पर बहुत प्रयोग किये हैं। 'बारदो' इसका नाम है तिब्बत में,इसके प्रयोग का।

तिब्बत में मरते हुए आदमी को सुषुप्ति में न चला जाए, इसकी चेष्टा करते हैं। अगर सुषुप्ति में चला गया तो फिर उसको इस जन्म की स्मृति मिट जाएगी। तो उसको इस जन्म की स्मृति बनी रहे, तो मरते हुए आदमी के पास विशेष तरह के प्रयोग करते हैं। उन प्रयोगों में उस आदमी को चेष्टापूर्वक जगाए रखने की कोशिश की जाती है। न केवल जगाए रखने की बल्कि उस मनुष्य के भीतर रूप को पैदा करने की भी चेष्टापूर्वक कोशिश की जाती है, ताकि स्वप्र चलता रहे, चलता रहे और उसकी मृत्यु स्वप्र की अवस्था में घटित हो जाए। यदि स्वप्र की अवस्था में मृत्यु घटित हो जाए, तो वह आदमी आनेवाले जन्म में अपने पिछले जन्म की सारी स्मृति लेकर पैदा होता है। इसे हम ऐसा समझें तो आसानी पड़ जाएगी। आप रात— भर सपने देखते हैं, यह जानकर आपको शायद भरोसा नहीं हणो। अनेक लज़ो कहते हैं कि वे सपने देखते ही नहीं। सिर्फ उनको पता नहीं है। अनेक लोग कहते हैं मुझे कभी—कभी सपना आता है। उन्हें सिर्फ स्मरण नहीं रहता। सपना रात— भर देखते हैं। पूरी रात में करीब—करीब बारह रूप औसत आदमी देखता है। इससे ज्यादा देखनेवाले लोग हैं, इससे कम देखनेवाले आदमी खोजने मुश्किल हैं। बारह स्वप्र रात्रि के करीब—करीब तीन चौथाई हिस्से को घेरते हैं। एक चौथाई हिस्से में सुषुप्ति होती है। बाकी तीन चौथाई में स्वप्र होते हैं। लेकिन आपको याद नहीं रहते हैं। क्योंकि एक स्वप्र गया, उसके बाद सुषुप्ति का अगर एक क्षण भी आ गया तो संबंध टूट जाता है स्मृति का।

आपको जो सपने याद रहते हैं, वे करीब—करीब भोर के सपने होते हैं, सुबह के सपने होते हैं। जिनके बाद

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