♥ भगवान का अर्थ किसी व्यक्ति से नहीं है। इसलिए यह न पूछें कि उसकी शक्ल क्या है और वह कैसे रहता है ? भगवान से अर्थ है एक अनुभूति का। कोई नहीं पूछता है कि प्रेम कैसा है और कहां
रहता है ? तो क्यों पूछते हैं कि परमात्मा कैसा है और कहां रहता है। प्रेम है एक अनुभूति। प्रेम की ही पराकाष्ठा परमात्मा की अनुभूति है। एक व्यक्ति से मैं प्रेम करूं, वह प्रेम कहलाता है और अगर समस्त के प्रति मेरी वही भाव-दशा हो जाय तो यह परमात्मा कहलाता है। प्रेम का परम विकास है। यह बच्चों जैसी बात कि ईश्वर बैठा हुआ है ऊपर और दुनिया बना रहा है, दुनिया चला रहा है, यह बच्चों जैसी बातें छोड़े। यह बातें गईं। ये बातें छोड़े कि भगवान ने एक दिन तय किया और कहा कि जाओ बन गई दुनिया और चलो। ये बच्चों जैसी बातें छोड़े। भगवान ने ऐसी किसी दुनिया को नहीं बनाया है और भगवान और उसकी सृष्टि दो अलग बातें नहीं हैं। क्रिएटर और क्रिएशन दो अलग बातें नहीं हैं। क्रिएटिविटी सृजनात्मक ऊर्जा जब अप्रगट होती है तो उसे हम परमात्मा कहते हैं और जब प्रगट होती है तो उसे हम सृष्टि कहते हैं। जब हृदय में कोई गीत उठता है तो वह परमात्मा है। और जब वह वाणी से प्रगट हो जाता है तो वह सृष्टि है। यह समस्त सृष्टि, यह समस्त सत्ता, यह पूरा एग्जिस्टेंस किसी बहुत अन्तर-निनाद को अपने भीतर लिए है । कोई गीत, कोई संगीत कोई आनंद वह फूंकना चाहती है। वह प्रगट हो रहा है। वही प्रगटीकरण यह संसार है। संसार और परमात्मा दो विरोधी बातें नहीं हैं। परमात्मा का ही प्रकार संसार है और जो लोग प्रेम का अनुभव करेंगे, वह सब तरफ उस परमात्मा की छवि को सब तरफ अनुभव करेंगे। सब तरफ जो है, वही है। लेकिन उसे जानने के लिए, उसे पाने के लिए खुद के भीतर न कुछ जानना पड़ेगा। शून्य हो जाना पड़ेगा। ज्ञान को छोड़ दो और प्रेम को विकसित होने दो। जहां ज्ञान का तट छूटता है और प्रेम के फूल खिलने शुरू हो जाते हैं, वहीं वह संगीत पैदा होता है जो समस्त के भीतर छिपा है, जो और खुद के प्राणों को समस्त से जोड़ देता है, वह अनुभव ही परमात्मा है..........
रहता है ? तो क्यों पूछते हैं कि परमात्मा कैसा है और कहां रहता है। प्रेम है एक अनुभूति। प्रेम की ही पराकाष्ठा परमात्मा की अनुभूति है। एक व्यक्ति से मैं प्रेम करूं, वह प्रेम कहलाता है और अगर समस्त के प्रति मेरी वही भाव-दशा हो जाय तो यह परमात्मा कहलाता है। प्रेम का परम विकास है। यह बच्चों जैसी बात कि ईश्वर बैठा हुआ है ऊपर और दुनिया बना रहा है, दुनिया चला रहा है, यह बच्चों जैसी बातें छोड़े। यह बातें गईं। ये बातें छोड़े कि भगवान ने एक दिन तय किया और कहा कि जाओ बन गई दुनिया और चलो। ये बच्चों जैसी बातें छोड़े। भगवान ने ऐसी किसी दुनिया को नहीं बनाया है और भगवान और उसकी सृष्टि दो अलग बातें नहीं हैं। क्रिएटर और क्रिएशन दो अलग बातें नहीं हैं। क्रिएटिविटी सृजनात्मक ऊर्जा जब अप्रगट होती है तो उसे हम परमात्मा कहते हैं और जब प्रगट होती है तो उसे हम सृष्टि कहते हैं। जब हृदय में कोई गीत उठता है तो वह परमात्मा है। और जब वह वाणी से प्रगट हो जाता है तो वह सृष्टि है। यह समस्त सृष्टि, यह समस्त सत्ता, यह पूरा एग्जिस्टेंस किसी बहुत अन्तर-निनाद को अपने भीतर लिए है । कोई गीत, कोई संगीत कोई आनंद वह फूंकना चाहती है। वह प्रगट हो रहा है। वही प्रगटीकरण यह संसार है। संसार और परमात्मा दो विरोधी बातें नहीं हैं। परमात्मा का ही प्रकार संसार है और जो लोग प्रेम का अनुभव करेंगे, वह सब तरफ उस परमात्मा की छवि को सब तरफ अनुभव करेंगे। सब तरफ जो है, वही है। लेकिन उसे जानने के लिए, उसे पाने के लिए खुद के भीतर न कुछ जानना पड़ेगा। शून्य हो जाना पड़ेगा। ज्ञान को छोड़ दो और प्रेम को विकसित होने दो। जहां ज्ञान का तट छूटता है और प्रेम के फूल खिलने शुरू हो जाते हैं, वहीं वह संगीत पैदा होता है जो समस्त के भीतर छिपा है, जो और खुद के प्राणों को समस्त से जोड़ देता है, वह अनुभव ही परमात्मा है..........
❣ _*ओशो*_ ❣
*संकलन - क्या ईश्वर मर गया है*
❤❤❤❤❤
No comments:
Post a Comment