*||🌸ओशो : "आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है " 🌸||*

आखिरी प्रश्न: भगवान,
अपने ही बस में नहीं मैं
दिल है कहीं तो हूं कहीं मैं
डर है सफर में कहीं खो न जाऊं मैं
रस्ता नया हां, हां, हां
*आज फिर जीने की तमन्ना है*
*आज फिर मरने का इरादा है।*

*वीणा भारती! उतरने लगी शराब तेरे गले में। तभी तो--हां, हां, हां--आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है! ये दोनों बातें एक साथ ही आती हैं। क्योंकि जीना और मरना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब जीने की तमन्ना आती है, तो मरने का इरादा भी आता है। जो जीना जानता है, वही मरना भी जानता है। जिसके जीने में आनंद होता है, उसकी मृत्यु में नृत्य होता है।*

शुभ हो रहा है। अब पीछे लौटकर कर मत देखना।
जाम चलने लगे, दिल मचलने लगे
जाम चलने लगे...चलने लगे...चलने लगे...चलने लगे
दिल मचलने लगे...मचलने लगे...मचलने लगे

अंजुमन झूम उठी बज्म लहरा गई
जाम चलने लगे, दिल मचलने लगे
जाम चलने लगे, दिल मचलने लगे
बाद मुद्दत महफिल में वो क्या आ गए
जैसे गुलशन में बहार आ गई...
जिंदगी एक चमन है, चमन है मगर
इस चमन की बहार ओ खिजां
कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं, कुछ नहीं
वो न आएं तो समझो खिजां के हैं दिन
अरे वो जो आ जाएं तो समझो बहार आ गई
रंग, खुशबू, सबा, चांद, तारे, किरन,
फूल, शबनम, शफक आबजू चांदी

उनकी दिलकश जवानी की तस्वीर में हुश्ने फितरत की हर चीज
काम आ गई
जाम चलने लगे, दिल मचलने लगे...
अंजुमन झूम उठी बज्म लहरा गई।

*अब लौट कर पीछे मत देखना। पीती चल। जीती चल। नाच। गा। गुनगुना खुद भी मस्त हो, औरों को भी मस्ती से भर !*

*अंजुमन को झुका देना है, लहरा देना है। इस पूरी पृथ्वी को मस्ती से भर देना है। वसंत आ सकता है, पुकार देने वाले चाहिए। मैं चाहता हूं, मेरे संन्यासी उस पुकार को देंगे, उस आह्वान को देंगे। इस पूरी पृथ्वी को मयखाना बना डालना है। उससे कम पर हमें राजी नहीं होना है।*

*ओशो*

*जो बोले सो हरि कथा*

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