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🌹प्रेम जोडता है;कामवासना भेद बनाती है🌹
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तुम किसी व्यक्ति को प्रेम कर सकते हो। इसलिए क्योंकि वह तुम्हारी कामवासना की तृप्ति करता है। यह प्रेम नहीं, मात्र एक सौदा है। तुम किसी व्यक्ति के साथ कामवासना की पूर्ति कर सकते हो इसलिए क्योंकि तुम प्रेम करते हो। तब काम भाव अनुसरण करता है छाया की भांति, प्रेम के अंश की भांति। तब वह सुंदर होता है; तब वह पशु-संसार का नहीं रहता। तब पार की कोई चीज पहले से ही प्रविष्ट हो चुकी होती है। और यदि तुम किसी व्यक्ति से बहुत गहराई से प्रेम किए चले जाते हो, तो धीरे-धीरे कामवासना तिरोहित हो जाती है। आत्मीयता इतनी संपूर्ण हो जाती है कि कामवासना की कोई आवश्यकता नहीं रहती। प्रेम स्वयं में पर्याप्त होता है। जब वह घड़ी आती है तब प्रार्थना की संभावना तुम पर उतरती है।
ऐसा नहीं है कि उसे गिरा दिया गया होता है। ऐसा नहीं है कि उसका दमन किया गया, नहीं। वह तो बस तिरोहित हो जाती है। जब दो प्रेमी इतने गहने प्रेम में होते है कि प्रेम पर्याप्त होता है। और कामवासना बिलकुल गिर जाती है। तब दो प्रेमी समग्र एकत्व में होते है। क्योंकि कामवासना, विभक्त करती है। अंग्रेजी का शब्द ‘सेक्स’ तो आता ही उस मूल से है जिसका अर्थ होता है, विभेद। प्रेम जोड़ता है; कामवासना भेद बनाती है। कामवासना विभेद का मूल कारण है।
जब तुम किसी व्यक्ति के साथ कामवासना की पूर्ति करते हो, स्त्री या पुरूष के साथ, तो तुम सोचते हो कि सेक्स तुम्हें जोड़ता है। क्षण भर को तुम्हें भ्रम होता है एकत्व का, और फिर एक विशाल विभेद अचानक बन आता है। इसीलिए प्रत्येक काम क्रिया के पश्चात एक हताशा, एक निराशा आ घेरती है। व्यक्ति अनुभव करता है कि वह प्रिय से बहुत दुर है। कामवासना भेद बना देती है। और जब प्रेम ज्यादा और ज्यादा गहरे में उतर जाता है तो और ज्यादा जोड़ देता है तो कामवासना की आवश्यकता नहीं रहती। तुम इतने एकत्व में रहते हो कि तुम्हारी आंतरिक ऊर्जाऐं बिना कामवासना के मिल सकती है।
🌹 *पतंजलि : योग - सूत्र*🌹
🌹♥🌎 *sho* 🙏🏻♥🌹
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