मनुष्य कभी भी काम से मुक्‍त नहीं हो सकता

 🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼मनुष्य कभी भी काम से मुक्‍त नहीं हो सकता। काम उसके जीवन का प्राथमिक बिन्‍दु है। उसी से जन्‍म होता है। परमात्‍मा ने काम की शक्‍ति को ही, सेक्‍स को ही सृष्‍टि का मूल बिंदू स्‍वीकार किया है। और परमात्‍मा जिसे पाप नहीं समझ रहा है, महात्‍मा उसे पाप बात रहे है। अगर परमात्‍मा उसे पाप समझता है तो परमात्‍मा से बड़ा पापी इस पृथ्‍वी पर, इस जगत में इस विश्‍व में कोई नहीं है।

 🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼फूल खिला हुआ दिखाई पड़ रहा है। कभी सोचा है कि फूल का खिल जाना भी सेक्‍सुअल ऐक्‍ट है, फूल का खिल जाना भी काम की एक घटना है, वासना की एक घटना है। फूल में है क्‍या—उसके खिल जाने में? उसके खिल जाने में कुछ भी नहीं है। वे बिंदु है पराग के, वीर्य के कण है जिन्‍हें तितलियों उड़ा कर दूसरे फूलों पर ले जाएंगी और नया जन्‍म देगी।

 🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼एक मोर नाच रहा है—और कवि गीत गा रहा है। और संत भी देख कर प्रसन्‍न हो रहा हे—लेकिन उन्‍हें ख्‍याल नहीं कि नृत्‍य एक सेक्‍सुअल ऐक्‍ट है। मोर पुकार रहा है अपनी प्रेयसी को या अपने प्रेमी को। वह नृत्‍य किसी को रिझाने के लिए है? पपीहा गीत गा रहा है, कोयल बोल रही है,एक आदमी जवान हो गया है, एक युवती सुन्‍दर होकर विकसित हो गयी है। ये सब की सब सेक्सुअल एनर्जी की अभिव्‍यंजना है। यह सब का सब काम का ही रूपांतरण है। यह सब का सब काम की ही अभिव्‍यक्‍त,काम की ही अभिव्‍यंजना है।

 🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼सारा जीवन, सारी अभिव्‍यक्‍ति सारी फ्लावरिगं काम की है।

🙇🏼वासना रूपांतरित हो तो पत्‍नी मां बन सकती है।

🙇🏼वासना रूपांतरित हो तो काम प्रेम बन सकता है।

 🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼काम ही प्रेम बनता है, काम की ऊर्जा ही प्रेम की ऊर्जा में विकसित होती है।

🙏🏻🏮🎈☯☮🌈💞🙇🏼ओशो - संभोग से समाधि की ओर 🙇🏼💞🌈☮☯🎈🏮🙏🏻

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