👌 *ओशो* *गुरजिएफ* *सिस्टम* 🦅
गुरजिफ ओर ओशो कहते हैं कि।
जैसे ही हम ध्यान ठहेरने लगते है,   जैसे ही हम जागृत होते  हैं,  हमारे में से   सभी प्रकार के   नकारात्मक सम्वेदनाए जैसे कि  विषाद  संघर्ष , तनाव , ईर्ष्या , धोखा, क्रोध , द्वेष सब  समाप्त हो जाते हैं।

हो जाना चाहिए अगर नहीं होते हैं, तो फिर हमें ध्यान लगा ही नहीं है। ईस का मतलब हम ध्यान के बदले कुछ ओर ही कर रहे हैं।
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आम तौर पर हम गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitation Force ) से पृथ्वी की ओर खींचे  रहेते  हैं लेकिन जब हम ध्यान में जाते है, या अवेर या होश से भर जाते हैं , तभी गुरुत्वाकर्षण शक्ति क्षीण हो जाती है। और नयी शक्ति जिसे उत्तोलन (levitation) कहते हैं, वह हमें ऊपर की ओर खींचती है जिससे  हम हल्कापन अनुभव करते हैं , हम बिना किसी बोझ के अनुभव करते है,
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तीसरा  हम जो भी कार्य करते है, वह एकदम अलग तरीके से होने लगता है . हमारी  चाल बदल जाती है. हमारी ढाल बदल जाती है,

अभी भी हम फिल्मे देखते है, संगीत सुनते है, नृत्य करते है,  लेकिन अब हम फिल्मों को अलग नजरिये  से देखते हैं, संगीत में एक अलग मज़ा आने लगता है, और नृत्य करते थकते ही नहीं , क्यूँकी अब हम सब होश पूर्वक  होता है.
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अभी हम होश पूर्वक सुनना आरंभ करते हैं । कइं बार कुछ समय हमारे में एक डर पैदा हो सकता है की हम कई पागल तो नहीं हो गए है. और डर के मारे , हम पहले की तरह ही फिर से बनना चाहते हैं, यानि फिर से सो जाना चाहते है । काम करने की अपनी गति कम हो जाती है . हम इसी संसार के लिए अयोग्य हो जाते हैं,
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एक तरह का मजा और साथ में एक तरह का ऊब (Boredom ) दोनों साथ में अनुभव करते है .   हम बहुत उर्जा से भर जाते हैं.
एक और बहुत महत्त्वपूर्ण संकेत है कि  हम औरों के लिए परेशानी बन जाते हैं ,  लोग हमें असामान्य व्यक्ति की तरह अपने परिवार में या मित्रों में  अलग  देखते हैं। 
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कुछ लोग ऐसा सोचते हैं , की  ध्यान या जागरूकता से  मन को शांति मिलेगी या जीवन में शांति छा जाएगी   और हम , फिर  स्वयं को  , समाज और परिवार के साथ बेहतर तरीके से समायोजित कर सकेंगे . लेकिन तथ्य इसके बिलकुल विपरीत होता है...
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हम पुराने मित्रों और परिवार के साथ ऊब जाते है, जब  हम ध्यानस्थ होते हैं तो  हम पाते हैं की  हमारे आस-पास के लोग वही चीजों के बारे में बार-बार  वही बातें करते हैं और हम एक उब से भर जाते हैं।
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इस तरह ध्यान कोई सांत्वना नहीं देता है। ये हम सब लोगो को भली भांति समज लेना जरुरी है. हा एक दिन निश्चित रूप से, शांति मिलती है , लेकिन बाद में , और ये शांती समाज और संसार के साथ   समाधान से नहीं ,लेकिन यह शांति ब्रह्मांड के साथ एक वास्तविक सामंजस्य से मिलती है .
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यदि  हम वास्तव में ध्यानस्थ हैं , और जब हम हमारे मन को देखते है , तो हम शुरे में बहुत भयभीत हो जाते  है, डर जाते है.।  हम खुद से भागना चाहेंगे क्युकी जैसे ही हम ध्यान में जाते है या जागते है , तो हम पाते है , की जिसको हम प्यार करते है , उनको हम घृणा भी करते है. बड़ी कश्मकश की परिस्थीती उत्पन होती है..
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.इस स्थिति में , हमें एक जागृत  मास्टर ओशो या  गुरजिएफ या क्रिश्र‌‌नमूरती या ध्यान-स्कूल या सहयात्री की आवश्यकता  होती  है, जो हमें संभाल सकते हैं।
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गुरजिएफ परिक्षक है। वह हमें बताते हैं कि ध्यान से ‌‌, डरिये या भागीए मत. ध्यान के ऐसा अवसर  पाने वाले  लोग बहुत ही विरले, दुर्लभ और भाग्यशाली हैं।...”...
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जीतू स्वामी
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