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🌼🌹 *भगवान का अर्थ* 🌹🌼
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भगवान का अर्थ
किसी व्यक्ति से नहीं है ।
इसलिए यह न पूछें कि
उसकी शक्ल क्या है और
वह कैसे रहता है ?
भगवान से अर्थ है
एक अनुभूति का ।
कोई नहीं पूछता है कि
प्रेम कैसा है और
कहां रहता है ?
तो क्यों पूछते हैं कि
परमात्मा कैसा है
और कहां रहता है ।

प्रेम है एक अनुभूति ।
प्रेम की ही पराकाष्ठा
परमात्मा की अनुभूति है ।
एक व्यक्ति से मैं प्रेम करूं ,
वह प्रेम कहलाता है
और अगर समस्त के प्रति
मेरी वही भाव-दशा
हो जाय तो यह
परमात्मा कहलाता है ।
प्रेम का परम विकास है ।
यह बच्चों जैसी बात कि
ईश्वर बैठा हुआ है ऊपर
और दुनिया बना रहा है ,
दुनिया चला रहा है ,
यह बच्चों जैसी बातें छोड़े ।
यह बातें गईं ।
ये बातें छोड़े कि भगवान ने
एक दिन तय किया
और कहा कि जाओ
बन गई दुनिया और चलो ।
ये बच्चों जैसी बातें छोड़े ।

भगवान ने ऐसी किसी
दुनिया को नहीं बनाया है
और भगवान और उसकी सृष्टि
दो अलग बातें नहीं हैं ।
क्रिएटर और क्रिएशन
दो अलग बातें नहीं हैं ।
क्रिएटिविटी सृजनात्मक ऊर्जा
जब अप्रगट होती है तो उसे
हम परमात्मा कहते हैं और
जब प्रगट होती है तो उसे
हम सृष्टि कहते हैं ।
जब हृदय में कोई गीत
उठता है तो वह परमात्मा है ।
और जब वह वाणी से
प्रगट हो जाता है तो वह सृष्टि है ।

यह समस्त सृष्टि ,
यह समस्त सत्ता ,
यह पूरा एग्जिस्टेंस किसी
बहुत अन्तर-निनाद को
अपने भीतर लिए है ।
कोई गीत , कोई संगीत
कोई आनंद वह फूंकना चाहती है ।
वह प्रगट हो रहा है ।
वही प्रगटीकरण यह संसार है ।
संसार और परमात्मा
दो विरोधी बातें नहीं हैं ।
परमात्मा का ही प्रकार संसार है और
जो लोग प्रेम का अनुभव करेंगे ,
वह सब तरफ उस परमात्मा की
' छवि को ' सब तरफ अनुभव करेंगे ।
सब तरफ जो है , वही है ।
लेकिन उसे जानने के लिए ,
उसे पाने के लिए
खुद के भीतर
' न कुछ ' जानना पड़ेगा ।
शून्य हो जाना पड़ेगा ।

ज्ञान को छोड़ दो और
प्रेम को विकसित होने दो ।
जहां ज्ञान का तट छूटता है और
प्रेम के फूल खिलने शुरू हो जाते हैं ,
वहीं वह संगीत पैदा होता है
जो समस्त के भीतर छिपा है ,
जो और खुद के प्राणों को
समस्त से जोड़ देता है ,
वह अनुभव ही परमात्मा है ।

🌼🌹 *क्या ईश्वर मर गया* 🌹🌼

🌹♥🌎 *sho* 🙏🏻♥🌹

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