तीन सूत्र खयाल रख लें।
एक, अगर दूसरे को धोखा देने
निकले–असफल हुए तो भी असफल होओगे;
अगर पूरे सफल हुए तो भी असफल होओगे।
दूसरा,
बुद्धिमानी का उपयोग दूसरे को
गङ्ढे में गिराने के लिये मत करना।
दूसरे के लिये गङ्ढा मत खोदना। क्योंकि
आखिर में पाओगे कि अपनी ही कब्र खुद गई।
और तीसरी बात,
संपदा जो दूसरे के विनाश से मिलती हो,
दूसरे की मृत्यु से आती हो,
या दूसरे के जीवन से आती हो,
दूसरे पर निर्भर हो, उसे संपदा मत मानना।
अन्यथा जिस दिन तुम सफल होओगे,
उस दिन आत्महत्या के अतिरिक्त कोई मार्ग न बचेगा।
उसको खोजना जो तुम्हारा है
और सदा तुम्हारा है; स्वतंत्र है;
किसी पर निर्भर नहीं है,
ताकि तुम मालिक हो सको।
तुम उसी दिन आत्मवान बनोगे,
जिस दिन तुम्हारा दीया बिन बाती बिन तेल जलेगा।
न तुम तेल मांगने जाओगे,
न तुम बाती मांगने जाओगे।
सब खो जाये–थोड़ा सोचना–सब खो जाये,
तो भी तुम्हारे होने में रत्ती भर फर्क न पड़े–बस,
तुम जिन हो गये। तुम बुद्ध हो गये।
वह जो बुद्ध बोधिवृक्ष के नीचे बैठे हैं,
उनको हमने परमात्मा कहा है,
भगवान कहा है,
सिर्फ इसीलिये कि उस क्षण में
उन्होंने उसको पहचान लिया,
जो अब सबके खो जाने से,
सब नष्ट हो जाने से भी नष्ट नहीं होगा।
उन्होंने समाज-मुक्त को पहचान लिया।
उन्होंने दूसरे से स्वतंत्र को पहचान लिया–वह,
जो दूसरे की सीमा के बाहर है,
जो दूसरे से मिलता नहीं। उन्होंने
‘बिन बाती बिन तेल’ जलने वाले दीये
की पहली झलक पा ली।
वह दीया तुम्हारे भीतर जल रहा है,
लेकिन जब तक तुम्हारी आंखें दूसरों पर लगी रहेंगी,
तब तक तुम उस दीये से परिचित नहीं हो सकते।
तुम्हारी आंख भीतर मुड़नी चाहिये,
दूसरों से मुक्त होनी चाहिये।
दूसरों से मुक्त होना संन्यास है–
दूसरों को छोड़ना नहीं, दूसरों से मुक्त होना।
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Osho बिन बाती बिन तेल–(झेन कथा) प्रवचन–8
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