अर्जुन का पहला प्रश्न है, ब्रह्म क्या है..? कृष्ण ने कहा, जिसका कभी नाश न हो.
फिर तो साफ हो गई बात कि इस जगत में ब्रह्म कहीं भी नहीं है. यहां तो जो भी है, सभी का नाश है.. आपने कोई ऐसी चीज देखी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी कोई ऐसी चीज सुनी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी कोई ऐसा अनुभव हुआ है, जिसका कभी नाश न हो..?
यहां तो जो भी है, सभी नाशवान है.
यहां तो होने की शर्त ही विनाश है. होने की एक ही शर्त है, न होने की तैयारी. जन्म होने के साथ मृत्यु के साथ समझौता करना पड़ता है. जन्म के साथ ही दस्तखत कर देने होते हैं मौत के सामने कि मरने को तैयार हूं..
यहां तो कुछ पाया कि खोने के अतिरिक्त और अब कुछ होने वाला नहीं है. यहां तो कोई मिला, तो बिछुड़ना होगा. यहां सभी कुछ नाशवान है. यहां जो बनता हुआ दिखाई पड़ रहा है, एक तरफ से देखो तो मालूम होता है बन रहा है, दूसरी तरफ से देखो तो मालूम होता है कि बिगड़ रहा है.
धूल के ढेर को, अगर आदमी सिर्फ धूल है, तो दोनों तरह से देखा जा सकता है.. या तो कोई बन रहा है, या कोई मिट रहा है. असल में जब भी कोई बन रहा है, तभी कोई मिट भी रहा है. और कहीं दूर नहीं, वहीं जहां बनना चल रहा है, वहीं मिटना चल रहा है..
यहां तो सभी कुछ विनाश है. यहां ठहराव नहीं है. यहां तो सभी कुछ नदी की धार की तरह बह रहा है, छू भी नहीं पाते किनारा कि छूट जाता है. मिलन हो भी नहीं पाता कि विदा की घड़ी आ जाती है..
और कृष्ण कहते हैं, वह जिसका विनाश नहीं है, वह है ब्रह्म..
~ओशो~
( गीता दर्शन )
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