मैंने एक अमेरिकन करोड़पति के बारे में सुना है,
जो अपने अरबों—अरबों डालरों से थक गया था।
इतना सारा धन और जरा भी शांति नहीं।
शांति की खोज में वह दुनिया में भटका
लेकिन कोई सदगुरु नहीं मिला।
किसी ने कहा, हिमालय पर बहुत ऊपर
एक आदमी रहता है। शायद सिर्फ वही
तुम्हारी सहायता कर सकता है।
थका मंदा वह किसी तरह
उस सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा।
और बात सच थी।
वहां एक बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था।
और इससे पहले कि वह कुछ कहे,
वह बूढ़ा आदमी बोला,
तुम्हारे पास सिगरेट है?
बहुत समय से यहां कोई आया नही।
और आध्यात्मिक व्यक्ति होने के नाते
मैं सिगरेट लाने के लिए नीचे नहीं जा सकता।
पहली बात पहले: तुम्हारे पास सिगरेट है?
उसके बाद तुम अपने आध्यात्मिक सवाल पूछना।
मुझे सिगरेट का मजा लेने दो, तुम दर्शन का मजा लेना।
उस आदमी को बड़ा धक्का लगा।
वह सारी दुनिया में शांति की खोज में घूमता रहा,
और अंततः वह इस बूढ़े मूढ़ के पास आ पहुंचा है,
जैसे जिसे एक सिगरेट की तलाश है।
उसने अपना सिगरेट का
पैक निकालकर उसे दिया।
वह बूढ़ा बाला, बहुत खूब। अब कहो,
तुम्हारी समस्या क्या है?
वह आदमी बोला, मेरी समस्या यह है
कि मुझे आत्मा की शांति चाहिए।
बूढ़े ने कहा, बात बड़ी सरल है।
घर जाओ। यहां आने की जरूरत नहीं है।
तुम मुझे देख सकते हो,
मैं किसी तरह यहां फंस गया हूं।
तुम्हारे पास सब कुछ है।
वह सब वहीं रहने दो, उसका मजा लो।
लेकिन उसका बोझ अपने सिर पर मत ढोओ।
मैं भी धनवान था,
लेकिन इन मूढ़ संतों ने मुझे त्याग की शिक्षा दी।
मैंने सब छोड़ दिया और सब कुछ है;
अब यही समय है जब तुम विश्राम कर सकते हो।
अब बाह्य जगत में पाने के
लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं है।
तुम्हारी सारी महत्वाकांक्षाएं पूरी हो चुकी हैं।
अब विश्राम करो और शांत बैठो
और तुम्हारे पास समय है,
आर्थिक सुविधा है।
सिर्फ इतना खयाल कि
अगली बार तुम जब आओ
तो सिगरेट के कुछ और पैक ले आना।
क्योंकि यहां सिगरेट बिलकुल नहीं मिलती।
और मुझे मन की शांति के बारे में कुछ मत पूछना;
क्योंकि मैं सिगरेट के अतिरिक्त
और कुछ सोचता ही नहीं।
वह पुरानी आदत...मैंने सब छोड़
दिया लेकिन पुरानी आदत कैसे छोड़ी जाए।
जीवन में थोड़ी बुद्धिमानी से कम लो।
तुम्हारे पास जो भी है
उसका उपयोग अपने लिए ऐसा
वातावरण बनाने के लिए करो,
जिसमें तुम विश्रामपूर्ण ढंग से रह सको..
ओशो : फिर अमरित की बूंद पड़ी--(प्रवचन--05)
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