🔴लोगों को देखें जब वे हंसते हैं, वे बहुत संभल कर हंसते हैं।
यह हंसी पेट से नहीं उठती, यह उनके भीतर से नहीं आती। पहले वे आपकी ओर देखेंगे फिर निरीक्षण करेंगे.. और तब हंसेंगे।
और उनके हंसने की भी एक सीमा है, एक हद तक आप उसे सहेंगे, उस हद तक जहां तक आप बुरा नहीं मानते जहां तक आप ईर्ष्यालु नहीं होते।

यहां तक कि हमारी मुस्कान भी झूठी है। हंसी तो गायब हो चुकी है, प्रसन्नता का कहीं भी पता नहीं, और आनंदित हो जाना तो लगभग असंभव है, क्योंकि उसकी तो आज्ञा ही नहीं है। अगर आप दुखी हैं तो कोई आपको पागल नहीं कहेगा। अगर आप आनंदित हैं और नाच रहे हैं तो हर कोई आपको पागल समझेगा। नृत्य तो नकारा गया है, गाना स्वीकृत नहीं ।
एक आनंदपूर्ण व्यक्ति...हमें लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है।

यह कैसा समाज है? अगर कोई दुखी है तो सब ठीक है, वह स्वीकृत है क्योंकि पूरा समाज कम या ज्यादा दुखी ही है। वह हमारे समाज का सदस्य है, हमारा हिस्सा है। अगर कोई आनंदित होता है तो हम सोचते हैं कि उसका दिमाग खराब हो गया है, वह पागल हो गया है। वह हमारा हिस्सा नहीं है....,
और हम ईर्ष्या से भर जाते हैं !

ओशो♣️

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