↔ तुम्हारे अस्तित्व के ये दो ध्रुव हैं।
पहला काम केंद्र है, और दूसरा सहस्त्रार है।

🌰 अंग्रेजी में सहस्त्रार के लिए कोई शब्द नहीं है।
        ये ही दो ध्रुव है। तुम्हारा जीवन या तो कामोन्मुख होगा या सहस्त्रारोन्मुख होगा। या तो तुम्हारी ऊर्जा काम-केंद्र से बहकर पृथ्वी में वापस जाएगी, या तुम्हारी ऊर्जा सहस्त्रार से निकलकर अनंत आकाश में समा जाएगी।
        तुम सहस्त्रार से ब्रह्म में, परम सत्ता में प्रवाहित हो जाते हो।

तुम काम केंद्र से पदार्थ जगत में प्रवाहित होते हो। ये दो प्रवाह है; ये दो संभावनाएं है।

जब तक तुम ऊपर की और विकसित नहीं होते, तुम्हारे दुःख कभी समाप्त नहीं होगे। तुम्हें सुख की झलकें मिल सकती है; लेकिन वे झलकें ही होंगी और बहुत भ्रामक होंगी।

जब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होगी, तुम्हें सुख की अधिकाधिक सच्ची झलकें मिलने लगेंगी। और जब ऊर्जा सहस्त्रार पर पहुंचेगी, तुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाओगे।
वही निर्वाण है। तब झलक नहीं मिलती, तुम आनंद ही हो जाते हो।

जिस क्षण तुम्हारे सहस्त्रार से, कामवासना के विपरीत ध्रुव से तुम्हारी ऊर्जा मुक्त होती है, तुम आदमी नहीं रह गए; तब तुम इस धरती के न रहे, तब तुम भगवान हो गए।

जब हम कहते है कि कृष्ण या बुद्ध भगवान है तो उसका यही अर्थ है।

उनके शरीर तो तुम्हारे जैसे है; उनके शरीर भी रूग्ण होंगे और मरेंगे। उनके शरीरों में सब कुछ वैसा ही होता है जैसे तुम्हारे शरीरों में होता है। सिर्फ एक चीज उनके शरीरों में नहीं होती जो तुम्हारे शरीर में होती है जो तुममें होती है; उनकी ऊर्जा ने गुरुत्वाकर्षण के पैटर्न को तोड़ दिया है। लेकिन वह तुम नहीं देख सकते; वह तुम्हारी आंखों के लिए दृश्य नहीं है--✳🌻ओशो 🌻✳

👣 तंत्र-सूत्र,भाग-3 प्रवचन-47 से,ओशो
🌷🌷🌿🌷
🙏☺

No comments:

Post a Comment