अहंकारी कभी प्रेम कर ही नहीं सकता

अहंकारी कभी प्रेम कर ही नहीं सकता
मैंने सुना है, हिटलर को कोई भी ‘तू’ कह कर संबोधित नहीं कर सकता था। हिटलर का कोई भी मित्र नहीं था। हिटलर का नाम भी लेकर कोई संबोधित नहीं कर सकता था। फ्यूहरेर ही कहना पड़ता था। हिटलर ने कभी किसी से मित्रता नहीं साधी। कभी कोई आदमी को इसने करीब नहीं आने दिया कि उसके कंधे पर हाथ रख ले। इतना भयभीत था!
हिटलर ने विवाह नहीं किया। मरने के आखिरी दिन दो घंटे पहले विवाह किया। इसलिए विवाह नहीं किया कि विवाह करने का मतलब एक स्त्री इतने निकट आ जाएगी। और जिस आदमी का अहंकार जितना विक्षिप्त है वह किसी को निकट पाने में घबड़ाता है, क्योंकि खतरा हो सकता है। निकट का व्यक्ति नुकसान पहुंचा सकता है। पत्नी को भी इतने निकट नहीं आने देना है, किसी स्त्री को कि वह रात एक ही कमरे में सो जाए, खतरा है। वह रात को उठे और छुरे भोंक दे, जहर पिला दे।
तो एक स्त्री उसे बारह वर्षों से प्रेम करती थी और वह उसे टालता रहा। वह कहता रहा कि रुको, अभी समय नहीं आया है कि मैं विवाह करूं। जिस दिन बर्लिन पर बम गिरने लगे और हिटलर के मकान के सामने तोपें दुश्मन की आ गईं और हिटलर की खिड़कियों से आकर गोलियां टकराने लगीं, तब हिटलर ने खबर भेजी उस औरत को कि तू जल्दी आ जा, हम विवाह कर लें।
और आप हैरान होंगे, बिना किसी साक्षी के एक पादरी को जल्दी जबरदस्ती चर्च से नींद से उठवा कर बुलाया गया। दो - चार मित्रों के बीच एक नीचे के तलघर में जल्दी से शादी हो गई और एक घंटे बाद दोनों ने जहर खाकर गोली मार ली -- पति - पत्नी दोनों ने। जब मौत बिलकुल करीब ही आ गई तब उसने सोचा कि अब कोई फिकर नहीं है, अब किसी को पास लिया जा सकता है। इतना भय! किसी के निकट आने में इतना डर!
जितना अहंकार प्रबल होगा उतना ही सारा जगत शत्रु मालूम पड़ने लगता है। जितना व्यक्ति विनम्र होगा, उतना ही सारे जगत के प्रति मैत्री की धाराएं बहने लगती हैं। मैत्री का अर्थ है निर-अहंकारिता, ईगोलेसनेस। मैत्री तभी जन्मेगी और सक्रिय होगी जब भीतर यह ‘मैं’ का भ्रम टूट जाए।
अहंकार से भरा हुआ आदमी प्रेम कर ही नहीं सकता, क्योंकि प्रेम में किसी को निकटता देनी पड़ती है। इतनी निकटता देनी पड़ती है कि वह जितने हम अपने निकट हैं उतने ही निकट वह भी हो जाता है। इसलिए अहंकारी प्रेम से भागता है और डरता है। क्योंकि प्रेम का मतलब है कि दूसरे को इतने निकट ले आना जहां कि खतरा हो सकता है, जहां कि कोई हमें मिटा सकता है.........
ओशो
प्रभु की पगडंडियाँ, प्रवचन #4

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