| बीज ही नहीं है तेरे पास, जो वृक्ष बन सके! ||
रामानुज एक गांव से गुजर रहे थे। एक आदमी ने आकर कहा कि मुझे परमात्मा को पाना है। तो उन्होंने कहा कि तूने कभी किसी से प्रेम किया है? तो उस आदमी ने झट से कहा, नही! मै इस झंझट में कभी पडा ही नहीं। प्रेम वगैरह की झंझट में नहीं पडा। मुझे तो बस परमात्मा को खोजना है। रामानुज ने फिर कहा: तूने झंझट ही नहीं की प्रेम की? उसने कहा, मैं बिलकुल सच कहता हूँ आपसे, कभी नही की! वह बेचारा ठीक ही कह रहा था। क्योंकि धर्म की दुनिया में प्रेम एक डिस्कवालिफिकेशन है, एक अयोग्यता है। तो उसने सोचा कि यदि मै कहूँ कि किसी को प्रेम किया है, तो शायद वे कहेंगे कि अभी प्रेम-व्रेम छोड़, सब राग-वाग छोड़, पहले इन सबको छोड़ कर आ, तब इधर आना! तो उस बेचारे ने अगर किया भी होगा, तो भी वह कहता गया कि, मैंने नहीं किया है। ऐसा कौन आदमी होगा, जिसने थोड़ा बहुत प्रेम नहीं किया हो?
रामानुज ने तीसरी बार पूछा कि तू कुछ तो बता, थोड़ा बहुत भी, कभी किसी को? उसने कहा, माफ करिए आप क्यों बार-बार वही बातें पूछे चले जा रहे है? मैंने प्रेम की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है। तो रामानुज ने कहा: फिर मुझे क्षमा कर, तू कहीं और खोज! क्योंकि मेरा अनुभव यह है कि अगर तूने किसी को भी थोडा प्रेम किया हो, तो उस प्रेम को इतना बड़ा जरूर किया जा सकता है कि, वह परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन अगर तूने प्रेम ही नहीं किया है तो तेरे पास कुछ है नहीं, जिसको बड़ा किया जा सके। बीज ही नहीं है तेरे पास, जो वृक्ष बन सके !!
ओशो,
'सम्भोग से समाधी की ओर'
रामानुज एक गांव से गुजर रहे थे। एक आदमी ने आकर कहा कि मुझे परमात्मा को पाना है। तो उन्होंने कहा कि तूने कभी किसी से प्रेम किया है? तो उस आदमी ने झट से कहा, नही! मै इस झंझट में कभी पडा ही नहीं। प्रेम वगैरह की झंझट में नहीं पडा। मुझे तो बस परमात्मा को खोजना है। रामानुज ने फिर कहा: तूने झंझट ही नहीं की प्रेम की? उसने कहा, मैं बिलकुल सच कहता हूँ आपसे, कभी नही की! वह बेचारा ठीक ही कह रहा था। क्योंकि धर्म की दुनिया में प्रेम एक डिस्कवालिफिकेशन है, एक अयोग्यता है। तो उसने सोचा कि यदि मै कहूँ कि किसी को प्रेम किया है, तो शायद वे कहेंगे कि अभी प्रेम-व्रेम छोड़, सब राग-वाग छोड़, पहले इन सबको छोड़ कर आ, तब इधर आना! तो उस बेचारे ने अगर किया भी होगा, तो भी वह कहता गया कि, मैंने नहीं किया है। ऐसा कौन आदमी होगा, जिसने थोड़ा बहुत प्रेम नहीं किया हो?
रामानुज ने तीसरी बार पूछा कि तू कुछ तो बता, थोड़ा बहुत भी, कभी किसी को? उसने कहा, माफ करिए आप क्यों बार-बार वही बातें पूछे चले जा रहे है? मैंने प्रेम की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा। मुझे तो परमात्मा को खोजना है। तो रामानुज ने कहा: फिर मुझे क्षमा कर, तू कहीं और खोज! क्योंकि मेरा अनुभव यह है कि अगर तूने किसी को भी थोडा प्रेम किया हो, तो उस प्रेम को इतना बड़ा जरूर किया जा सकता है कि, वह परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन अगर तूने प्रेम ही नहीं किया है तो तेरे पास कुछ है नहीं, जिसको बड़ा किया जा सके। बीज ही नहीं है तेरे पास, जो वृक्ष बन सके !!
ओशो,
'सम्भोग से समाधी की ओर'
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