जीना सिर्फ आज ही होता है

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।।जीना सिर्फ आज ही होता है ।।
सिकंदर मर रहा था। तो उसने कहा, सारा साम्राज्य दे दूंगा, थोड़ी देर मुझे बचा लिया जाए—चौबीस घंटे बचा लिया जाए। मुझे मेरी मां से मिलना है। पास आ गया था अपनी राजधानी के, लेकिन अभी भी फासला था चौबीस घंटे का। चिकित्सकों ने कहा, असंभव है। उसने कहा, आधा राज्य देता हूं पूरा देता हूं। चिकित्सकों ने कहा, अब तुम कुछ भी दो, असंभव है। चौबीस घंटे तो बहुत, एक सांस भी हम न बढ़ा सकेंगे। भविष्य पर हमारा कोई बस नहीं।

सिकंदर रोने लगा और उसने कहा, अगर मुझे पता होता पहले, तो मैंने सांसें व्यर्थ न गंवायी होतीं। अगर एक सांस नहीं मिल सकती मेरे पूरे साम्राज्य से, और इसी साम्राज्य के लिए सब सांसें मैंने गंवा दीं, काश मुझे पहले पता होता!

लेकिन सिकंदर गलत कह रहा है। नहीं पता हो, ऐसा नहीं है। सारे शास्त्र यही दोहरा रहे हैं। एक धुन से यही दोहरा रहे हैं। सारे सदगुरु यही दोहरा रहे हैं, एक स्वर से यही दोहरा रहे हैं। सिकंदर ने न सुना हो, ऐसा नहीं है। सिकंदर को सत्संग की बड़ी रुझान थी। भारत भी आया तो संन्यासियों से मिला था। यूनान में भी अरस्तु का शिष्य था। सुकरात के शिष्य का शिष्य था। ज्ञानियों के पास बैठता था। न सुना हो, ऐसा नहीं है। लेकिन बहरा रहा होगा। सुने को अनसुना किया होगा, जैसा तुम कर रहे हो।

मौत भविष्य को छीनती है। और जो जीया नहीं, उसका सारा जीवन भविष्य में है। वह सोचता है, कल जीएंगे। आज गया, कोई हर्जा नहीं। हजार चिंताएं थीं, उन्हें सुलझाने में लगे थे, कल जीएंगे। सब चीजों से निवृत्त होकर कल जीएंगे। आज मकान बना लेते हैं, कल जीएंगे। आज पत्नी ले आते हैं, कल जीएंगे। आज धन कमा लेते हैं, कल जीएंगे। ऐसा आदमी कल पर टालता है जीवन को। आज तैयारी करता है, जीने को कल पर टालता है। एक दिन मौत आती है—तैयारी तो कभी पूरी होती नहीं। हो नहीं सकती। आदमी का मन ऐसा है। कितना ही अच्छा मकान बनाओ, और अच्छा बनाया जा सकता है। कितनी ही सुंदर स्त्री ले आओ, कितना ही सुंदर पति खोज लो, और सुंदर खोजा जा सकता है।

मनुष्य की सबसे बड़ी पीड़ा यही है कि मनुष्य के पास कल्पना है। कल्पना के कारण वह श्रेष्ठतर का हमेशा सपना देख लेता है। सुंदरतम स्त्री—क्लियोपैत्रा— तुम्हें मिल जाए, तो भी तुम सोचोगे कि आंख थोड़ी और काली हो सकती थी। कि आंख थोड़ी और मछलियों जैसी हो सकती थी। कि चेहरा और थोड़ा गोरा हो सकता था, कि और थोड़ा सांवला हो सकता था। कि और सब तो ठीक है, लेकिन बाल मेघों की घटाओं जैसे नहीं। कि और सब तो ठीक है, नाक थोड़ी लंबी है, कि थोड़ी छोटी है। मनुष्य के पास कल्पना है। कल्पना के कारण वह श्रेष्ठतर की सदा ही चितना कर सकता है। तुम जाकर ताजमहल में भी भूल—चूके खोज सकते हो। अक्सर लोग यही करते हैं। ताजमहल में जाकर भूल—चूके खोजते हैं—कहां कमी रह गयी? कहां..?

ऐसा तो आदमी खोजना मुश्किल है जिसके पास कल्पना न हो। कल्पना ही तो सताती है, परेशान करती है।

ओशो 🌸, एस धम्‍मो सनंतनो, भाग -6

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