इस घड़ी का आनन्द लो अगली घड़ी का क्या ठिकाना

🌹🌹इस घड़ी का आनन्द लो अगली घड़ी का क्या ठिकाना  🌹🌹

मत पूछो कि आगे क्या होना है ! आगे की चिंता भी क्या !
......जो इस घड़ी हो रहा है,  उसे जियो ! जो इस घड़ी मिल रहा है,  उसे पिओ ! जो इस घड़ी तुम्हारे पास खड़ा हैं,  उसे मत चूको ! जो नदी सामने बह रही है, झूको,  डूबकी लगाओ,  आगे क्या होता है ! आगे का खयाल आते ही,  जो मौजूद है,  उससे आंखे बंद हो जाती है !  और चिंतन, चिंता,  विचार,  कल्पना,  स्वप्न,  चल पड़े फिर तुम !  फिर चले दूर सत्य से !  फिर छूटे वर्तमान से ! फिर टूटे परम सत्ता से ! परम से टूटने का उपाय है, आगे का विचार !

     अगर थोड़ा सा सुख मिल रहा है,  उसे पूरी त्वरा से जियो !  तुम इस क्षण अगर सुखी रहे,  तो अगला क्षण इससे ज्यादा सुखी होगा,  यह निश्चित है ! क्योंकि तुम सुखी होने की कला को को थोड़ा और ज्यादा सीख चूके होओगे ! अगर इस क्षण तुम आनंदित हो,  तो अगला क्षण ज्यादा आनंदित होगा, यह निश्चित है ! क्योंकि अगला क्षण आयेगा कहां से..?  तुमै भीतर से ही जन्मेगा !!  तुम्हारे आनंद में ही सरोबार जन्मेगा ! अगला क्षण भी तुमसे ही निकलेगा ! अगर गुलाब के पौधे पर सुंदर फूल है,  तो अगला फूल और भी सुंदर होगा ! पौधा तब तक और भी अनुभवी हो गया ! और जी लिया जीवन को, थोड़ा और परिचित हो गया...आनंद से, खिलावट से...!

    तुम्हारा अगला क्षण तुमसे निकलेगा ! तुम अगर अभी दुखी हो,  अगला क्षण और भी ज्यादा दुखी होगा..! तुम अगर अभी परेशान हो, अगले क्षण में परेशानी और बढ़ जायेगी,  क्योंकि एक क्षण की परेशानी तुम और जोड़ लोगे ! तुम्हारी परेशानी का संग्रह और बड़ा होता जाएगा ! इस क्षण की चिंता करो, बस उतना काफी है ! इस क्षण के पार पलायन मत करो ! वर्तमान में जिओ !  वर्तमान को स्वीकार करो ! इस क्षण से दूसरा क्षण अपने - आप निकलता है,  तुम्हें उसकी चिंता, उसका विचार,  उसका आयोजन करने की कोई जरूरत नहीं है ! और अगर तुमने आयोजन किया, चिंता ली...तो तुम जो मिला ही हुआ था, थोडा ही सही, जो उपलब्ध था, उससे चूक जाओगे ! चूक से निकलेगा अगला क्षण, महाचूक होगी फिर ! अगले क्षण तुम फिर अगले क्षण के लिए सोचोगे, तुम ठहरोगे कहां ??  आज तुम कल के लिए सोचोगे,  कल जब आयेगा तो आज की भांति आयेगा,  फिर तुम कल के लिए सोचोगे..! कल कभी आया...?

   जिसे तुम आज कह रहे हो,  यह भी तो कल कल था ! इसके लिए ही तो तुम कल सोच रहे थे,  आज यह आ गया है,  अब फिर आगे के लिए सोच रहे हो ! यह तो दृष्टि की बड़ी गहरी भ्रांति है ! इससे जो सामने है,  वह तो दिखता ही नहीं और जो नहीं होता है, उसका हम विचार किये जाते है !
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ओशो 
"जिन सूत्र" प्रवचन से....

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