🍃 *ध्यान करते समय*🍃
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इसलिए ध्यान के आखिरी चरण में मैं आपसे कहता हूं कि आप जैसे हैं मुर्दें की भांति हो जाए। कुछ भी हो रहा हो मुर्दें की भांति हो जाए। नहीं तो ध्यान की जो शक्ति जगती है उसको भी आप बाहर ले जाएंगे, वो तत्क्षण बाहर चली जाएगी।
अगर आपको आंखें खुली रखने का मौका दिया जाए तो ध्यान की जो शक्ति जगी है, आपकी आंखों से तत्क्षण बाहर घूमने लगेगी। आप किसी व्यर्थ चीज पर उसको नष्ट कर देंगे।
पास में खडी कोई स्त्री दिखाई पड जाएगी,
कोई आदमी नाचता हुआ दिखाई पड जाएगा,
कोई व्यक्ति पागल सा मालूम पडेगा,
आपको पता नहीं कि आप क्या कर रहें है। लेकिन आपकी आंखें अभी ताजी है, भीतर ध्यान पैदा हुआ है, आप उस ध्यान को नष्ट किए दे रहे हैं।
एक क्षण में, घंटो में जो पैदा होता है
वो एक क्षण में खोया जा सकता है।
इसलिए कहता हूं आंखें बांध कर रखे। ताकी वो जो ध्यान पैदा हुआ है आंख सें बाहर ना बहें। इसलिए कहता हूं शरीर को मुर्दें कि भांति छोड दे। जरा भी हिलाए--डुलाए ना, क्योंकि आपको अपनी ही बेईमानी का कोई पता नहीं है।
कहीं लगेगा कि पैर में दर्द हो रहा है,
कहीं लगेगा कि हाथ जरा ठिक कर ले,
कहीं लगेगा कि सिर में खुजलाहट आ रही है,
अगर आ भी रही है सिर में खुजलाहट,
तो दस मिनट में क्या बिगडने वाला है,
जिंदगी पडी है खुजला लेना।
और अगर दस मिनट पैर में तकलीफ भी हो रही है तो क्या बिगडा जा रहा है। कोई मौत नहीं आ जाएगी। और अगर एक चिंटी पैर पर चढनी शुरु हो गई, तो क्या बिगाड लेगी। काट ही सकती है। कोई सांप भी नहीं चढ गया है। चिंटी ही चढ रही है। मगर एक चिंटी आपको बेचैन कर देती है, चिंटी बेचैन नहीं करती है, चिंटी बहाना है।
आपके भीतर जो ध्यान कि शक्ति पैदा हुई है वो कोई भी बहाने बाहर बहना चाहती है। आप हाथ से चिंटी को हटा देंगे, आपको पता नहीं कि उस हाथ कि उस छोटी सी हरकत में आपने ध्यान बाहर भेज दिया। इसलिए कहता हूं कि जब ध्यान कि ऊर्जा जगती है, तो सब तरफ से रुक जाए।बंद पत्थर कि तरह हो जाए।
इस दस मिनट में बाहर कि दुनिया रहे ही नहीं, तो ही किसी दिन, किसी क्षण मौका आएगा कि ध्यान धक्का मारेगा और भीतर एक झलक मिल जायेगी। एक झलक मिल जाये तो फिर आपको रस और स्वाद आ गया, तो फिर आप भीतर कि तरफ जा सकते है।
लेकिन आप छोटी चिजों में खोने को तैयार है। बहुत क्षुद्र चिजों में अगर सोचेंगे तो आपको भी लगेगा कि क्या क्षुद्र बात थी, इसमें खोने जैसा क्या था। खडे थे थक गये थे। तो इसमें क्या अडचण आ रही थी ?
लेकिन मैं देखता हूं कि आप अपने को कैसा धोका दे देते है। जल्दी से बैठ जाते हैं। मैं कहता हूं रुक जायें, आप जल्दी से बैठ जाते हैं। मैं कहता हूं रुक जायें, जैसे हैं वैसे, आप जल्दी से बैठकर ठिक आसन लगाकर.... आपको पता नहीं कि आप क्या कर रहें हैं।
किसको धोका दे रहें है, कोई मुझे धोका दे रहे हैं।
मुझे धोका देने का क्या सार.....।
आपने ही तीस मिनट इतना श्रम लिया, और आप एक सेकंड में उसको खो रहें हैं। क्योंकि आप ध्यान बाहर दे रहें हैं।
शक्तियां जरा से छिद्र से बह जाती है। और आप ये मत सोचना कि नाव में एक छेद है। इसलिए क्या हर्ज.... पार हो जायेंगे। एक छेद का सवाल नहीं, छेद है इतना काफि है। एक छेद नाव को डुबा देगा। और ये बेईमानियां छेद बन जाती हैं।
🍃🍃 *ओशो* 🍃🍃
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