वह जो नाभि केंद्र है वह भय का केंद्र है। जब आप भयभीत होंगे तब आपका पाचन एकदम खराब हो जाएगा। चिंतित होंगे, पाचन खराब हो जाएगा। इसलिए चिंता और भय के कारण . . . दुनिया में आज बहुत भय है और बहुत चिंता है। अल्सर की बीमारी का और कोई कारण नही होता। जितना भयभीत और चिंतित आदमी होगा, पेट की सारी व्यवस्था धीरे- धीरे विकृत ओर खराब होती चली जाएगी।
दुनिया जितनी शिक्षित होगी, जितना दुनिया में भय कम होगा, उतना ही पुजा ओर प्रार्थना करने वाले धर्म जमीन से अपने आप समाप्त होते चले जाएंगे। क्योंकि वे धर्म नाभि के केंद्र से विकसित होते है, अगर नाभि का केंद्र मजबूत हुआ तो वे विलिन हो जाएंगे। मंदिरो में पुरूषो की बजाय स्त्रियां ज्यादा दिखाई पडती हैं, उसका और कोई कारण नहीं है; उनका नाभि का केंद्र पुरूषों से ज्यादा क्षीण होता है। जहां एक पुरूष होगा वहां कम से कम चार स्त्रियां मंदिर में होगी। सारे मंदिर स्त्रियां चलाती है, सारे साधु- संतो को स्त्रियां चलाती है। भय - भय वाला भगवान उन्हें अपील करता है, उन्हें सार्थक मालूम होता है।
इस पर ध्यान देना जरूरी है कि जो आदमी भी जीवन में बहुत भयभीत है उसे ध्यान के साथ नाभि के केंद्र पर थोडे प्रयोग करने जरूरी होते है, उस केंद्र को मजबूत करने के सुजाव देने जरूरी होते है। और बडे मजे की बात है कि ये केंद्र चूंकि प्राणों के केंद्र है, विद्युत के केंद्र है, ये मात्र सुजाव से परिवर्तित हो जाते है। इनके लिए कुछ और करना नहीं पडता।
|| ओशो ||
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