धर्म का संबंध कृत्य से नहीं है; अस्तित्व से है..

धर्म का संबंध कृत्य से नहीं है; अस्तित्व से है..

तुम्हारे भीतर के केंद्र पर अगर प्रेम है, तो तुम्हारी परिधि पर प्रार्थना होगी. तुम्हारे भीतर के केंद्र पर अगर अहर्निश शांति है, तो तुम्हारे बाहर के केंद्र पर ध्यान होगा. तुम्हारे भीतर के केंद्र पर अगर पल-पल होश है, तो तुम्हारा पूरा जीवन तपश्‍चर्या होगा, इससे उलटा नहीं है..

परिधि को बदलने से केंद्र नहीं बदलता, केंद्र की बदलाहट से परिधि अपने-आप बदल जाती है; क्योंकि परिधि तुम्हारी छाया है. छाया को बदलकर कोई स्वयं को नहीं बदल सकता; लेकिन स्वयं बदल जाए तो छाया अपने-आप बदल जाती है.
लोग परिधि को बदलने में ही जीवन नष्ट कर देते हैं. आचरण को बदलने में सब कुछ दांव पर लगा देते हैं; जब कि आचरण बदल भी जाये तो भी कुछ बदलता नहीं..

तुम आचरण को कितना ही बदल लो, तुम 'तुम' ही रहोगे..
चोरी करते थे, साधु हो जाओगे. धन इकट्ठा करते थे, बांटने लगोगे. लेकिन तुम 'तुम' ही रहोगे. और धन का मूल्य तुम्हारी आंखों में वही रहेगा जो चोरी करते समय था, वही मूल्य दान करते समय रहेगा.. चोरी करते समय तुम समझते थे कि धन बहुत कीमत का है, दान देते वक्त भी तुम समझोगे कि धन बहुत कीमत का है. धन मिट्टी नहीं हुआ, नहीं तो मिट्टी को कोई दान देता है !

तुम चाहे पकड़ो पैसा और चाहे छोड़ो, दोनों ही हालत में मूल्य रूपांतरित नहीं होता.. तुम चाहे संसार में रहो, चाहे भाग जाओ, संसार का मूल्य वही का वही बना रहता है. तुम पीठ करो कि मुंह, यात्रा में बहुत भेद नहीं पड़ता..जब तक कि तुम केंद्र से बदल न जाओ.

आचरण नहीं, अंतस् की क्रांति चाहिए. और जैसे ही अंतस् बदलता है, सभी कुछ बदल जाता है...
संकलन - आचार्य बजरंग गुरूजी 🙏
  ओशो🌹
( शिव सूत्र )

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