‘जिसने मार्ग पूरा कर लिया।’

⭕sh⭕ba meditati⭕n
कौन है वह व्यक्ति, जिसने मार्ग पूरा कर लिया? वही, जिसने जीवन की धूप में अपने को पका लिया; जीवन की गहराइयों और ऊंचाइयों को छुआ; बुरे—भले अनुभव किए; पाप—पुण्य को चखा; गिरने की पीड़ा भी जानी, उठने का अहोभाग्य भी जाना; अंधेरी रातें भी, सूरज की रोशनी से दमकते दिन भी; जिसने सब देखा, जो सबका साक्षी बना।
      जिसने सब देखा, जिसने सब को अपने ऊपर से गुजर जाने दिया, लेकिन किसी के भी साथ तादात्म्य न बाधा। जवानी आई तो जवान न हुआ; सुख आया तो अपने को सुखी न समझा; दुख आया तो अपने को दुखी न समझा। जागरण! जागा रहा। होश का दीया जलता रहा। जो आया, उसे स्वीकार किया : जरूर कोई पाठ छिपा होगा। जीवन में कुछ भी आकस्मिक, अकारण घटता नहीं। जीवन में जो भी घटता है, सकारण है। कहीं कोई वजह होगी।
      अगर आदमी को बार—बार मिटाकर बनाया जाता है तो कारण यही है कि जब तक आदमी बन नहीं पाता, तब तक बार—बार मिटाना पड़ता है।
      जैसे मूर्तिकार मूर्ति गढ़ता है तो छैनी चलाता चला जाता है, जब तक कि मूर्ति पूरी नहीं हो जाती। पीड़ा होती होगी पत्थर को। छैनी दुश्मन मालूम होती होगी। भाग जाने का मन होता होगा। छैनी को त्याग देने का मन होता होगा। लेकिन तब पत्थर अनगढ़ा रह जाएगा। तब वह भव्य प्रतिमा आविर्भूत न होगी, जो मंदिरों में विराजमान हो जाए; जो हजार—हजार सिरों को झुकाने में समर्थ हो जाए।
      जीवन की धूप में पकना ही मार्ग का पूरा होना है। जैसे फल पक जाता है तो गिर जाता है, ऐसे जीवन के मार्ग को जिसने पूरा कर लिया, वह जीवन से मुक्त हो जाता है। फल जब पक जाता है तो जिस वृक्ष से पकता है, उसी से छूट जाता है। इस चमत्कार को रोज, देखते हो, पहचानते नहीं। फल पक जाता है तो जिस वृक्ष ने पकाया, उसी से मुक्त हो जाता है; पकते ही मुक्त हो जाता है।
कच्चे में ही बंधन है। कच्चे को बंधन की जरूरत है। कच्चे को बंधन का सहारा है। कच्चा बिना बंधन के नहीं हो सकता। बंधन दुश्मन नहीं, तुम्हारे कच्चे होने के सहारे हैं। जब तुम पक जाओगे, जब तुम अपने में पूरे हो जाओगे, वृक्ष की कोई जरूरत नहीं रह जाती, फल छूट जाता है।
      ऐसे ही संसार से मुक्ति फलित होती है, जब तुम पक जाते हो।
      बुद्ध के वचनों को बड़ा गलत समझा गया है। सभी बुद्ध पुरुषों के वचनों को गलत समझा गया है। कहा कुछ, तुम समझे कुछ। गौर से सुनना!
      'जिसने मार्ग पूरा कर लिया है, जो शोकरहित और सर्वथा विमुक्त है।’
      वह लक्षण है मार्ग पूरे करने का : कि जो शोकरहित और सर्वथा विमुक्त है। फल टूट गया अपने आप। यह लक्षण है कि फल पक गया। लेकिन फल को तुम कच्चा भी तोड़ ले सकते हो। तोड़ा गया फल पका नहीं होगा। और तोड़े गए फल में पीड़ा का दंश रह जाएगा, दुख रह जाएगा। जो पकने की कमी रह गई, वह सालती रहेगी, काटे की तरह चुभती रहेगी। और फल जब तुम कच्चा तोड़ते हो तो न केवल फल को पीड़ा होती है, वृक्ष को भी पीड़ा होती है। अभी टूटने की घड़ी न आई थी, अभी मुक्त होने का क्षण न आया था, जल्दबाजी की, अधैर्य किया।
      तो जिनको तुम संन्यासी कहते हो, उनमें से अधिक तो अधैर्य से भरे हुए लोग हैं। उन्होंने परमात्मा को पूरा मौका न दिया। रास्ता पूरा न हों पाया और वे हट गए। फल पक न पाया और उन्होंने झटककर अपने को तोड़ लिया। इसलिए मंदिरों में वे बैठे रहेंगे, लेकिन उनके मन में बाजार होंगे। आश्रमों में वे बैठे रहेंगे, लेकिन उनके मन में कामना के बीज होंगे, वासना चलती ही रहेगी। कच्चे थे!
      मैं तुमसे कहता हूं कभी भागना मत। पलायन से कभी कोई मुक्त नहीं हुआ है। भगोड़ों के लिए नहीं है भगवान। कहीं भागने से कुछ मिला है? भागना तो सबूत है भय का। कच्चे टूट जाना सबूत है जल्दबाजी का, अधैर्य का।
और जिसके पास धैर्य ही नहीं है, अनंत प्रतीक्षा नहीं है, वह इस परम फल को उपलब्ध न हो सकेगा, जिसे हम परमात्मा कहते हैं।
'जिसने मार्ग पूरा कर लिया है।’
      अर्थात जिसने जीवन को पूरा मौका दिया है, सब रंगों में, सब रूपों में। डरे—डरे मत जीना, तूफानों से छिपकर मत जीना। आंधिया आएं तो घरों में मत छिप जाना। आधी भी अकारण नहीं आती, कुछ धूल—धवांस झाडू जाती है। आधी भी अकारण नहीं आती, कोई चुनौती जगा जाती है; कोई भीतर सोए हुए तारों को छेड़ जाती है। एक बात तो सदा ही स्मरण रखना कि इस संसार में अकारण कुछ भी नहीं होता—तुम चाहे पहचानो, चाहे न पहचानो। देर—अबेर कभी न कभी जागोगे तो समझोगे। जो अंगुलियां तुम्हें शत्रु जैसी मालूम पड़े, एक दिन तुम पाओगे कि उन्होंने भी तुम्हारे हृदय की वीणा को जगाया।
      अंगुलियों की कृपा ही झंकार है
अन्यथा नीरव निरर्थक बीन है
वीणा अगर डर जाए और छिप जाए, अंगुलियों को छेड़ने न दे स्वयं के तारों को, तो वीणा मृत रह जाएगी। संगीत सोया रह जाएगा।
      ⭕sh⭕ba

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