🌹जिंदगी का प्रयोजन आखिर क्या है!!🌹
दो भिखमंगे राह के किनारे बैठे बात करते थे । उनमें से एक पूछ रहा था कि जिंदगी का प्रयोजन क्या है, , किसलिए है जिंदगी ? दूसरे ने कहा , जीने के सिवाय और कुछ कर भी क्या सकते हो
तुम भी उस दूसरे से राजी हो कि जिंदगी में जीने के सिवाय और कर भी क्या सकते हो । और जीना भी तुम्हारे हाथ में नहीं है ; अनंत — अनंत स्थितियों पर निर्भर है । वह सब अचेतन है । क्यों तुम्हारे भीतर कामवासना उठी ; क्यों तुमने परिवार बनाया ; क्यों लोभ जगा ; क्यों तुमने धन इकट्ठा किया ; क्यों क्रोध उठा ; क्यों तुमने शत्रु निर्मित किये ; क्यों तुमसे अपराध हुआ ; क्यों तुमने बेईमानी की — कुछ भी साफ नहीं है । तुम जैसे एक कठपुतली हो , धागे किसी और के हाथ में हैं ; जैसे कोई और तुम्हें नचाता है और तुम नाचते हो । तुम्हें वहम भर है कि मैं नाच रहा हूं.
अपनी जिंदगी को गौर से देखो तो तुम पाओगे , तुम कठपुतली से ज्यादा नहीं हो । और ऐसी कठपुतली की जिंदगी में क्या सत्य की कोई घटना घट सकती है जो अपना मालिक भी न हो..
ओशो🌹
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