*श्वॉसो की माला :*
*बुद्ध* ने कहा है कि- शास्त्र का भी सहारा न लेना, *श्वांस का सहारा लेना* क्योंकि शास्त्र भी जरा दूर है। श्वांस भीतर जाए, देखना, श्वांस बाहर जाए, देखना।
*श्वांस की जो परिक्रमा चल रही हैं, श्वांस की जो माला चल रही है, उसे देखना। बुद्ध ने इसे "आनापानसतीयोग" कहा है।*
श्वांस भीतर जाए तो तुम उसे देखते हुए भीतर जाना। श्वांस नासापुटो को छुए तो तुम वहां मौजूद रहना, गैर मौजूदगी में न छुए। तुम *होशपूर्वक* देखना कि श्वांस ने नासापुटो को छुआ। ऐसा भीतर साक्षात्कार करना है। फिर श्वांस भीतर चली, श्वांस की रथ की यात्रा शुरू हुई, वह तुम्हारे फेफड़े मे गई, और गहरी गई, उसने तुम्हारी नाभिस्थल को उपर उठाया, देखते जाना। उसके साथ ही जाना, छायां की तरह उसका पीछा करना। फिर श्वांस एक क्षण को रुकी, तुम भी रुकना। फिर श्वांस वापस लौटने लगा, तुम भी लौट आना। *इस श्वांस की परिक्रमा का तुम पीछा करना होश पूर्वक।*
तो बुद्ध ने कहा- ये सुगम सहारा है। पढ़ा लिखा हो, गैर पढ़ा लिखा हो पंडित हो, गैर पंडित हो, सभी साध लेंगे। *श्वांस तो सभी को मिली है। यह "प्रकृति प्रदत्त माला" है। जो सभी को जन्म के साथ मिली है।*
*श्वांस की एक और खुबी है कि श्वांस तुम्हारी आत्मा और शरीर का सेतु है। उससे हीं शरीर और आत्मा जुड़े है।*
अगर तुम *श्वांस के प्रति जाग जाओ,* तो तुम पाओगे शरीर बहुत पिछे छुट गया, बहुत दूर रह गया। श्वांस मे जागकर तुम देखोगे, तुम अलग हो, शरीर अलग है। *श्वांस ने हीं जोड़ा है, श्वांस हीं तोड़ेगी।*
तो मृत्यु के वक्त जब श्वांस छुटेगी, तो तुमने श्वांस का बाहर जाना भी देखा, तुमने देखा कि श्वांस बाहर चली गई और और भीतर नही आयी और तुम देखते रहे - *श्वांस बाहर चली गई और लौटी नही और तुम देखते रहे - तब तुम कैसे मरोगे ? वह जो देखता रहा श्वांस का जाना भी, वह तो अभी भी है, वह सदा हीं है..!!*
*ओशो💎*
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